Editorial: डेरा प्रबंधक रंजीत हत्या मामले में फैसले का पलटना दुर्भाग्यपूर्ण
- By Habib --
- Wednesday, 29 May, 2024
dera manager ranjit murder case
The reversal of the verdict in the Dera manager Ranjit murder case is unfortunate डेरा सच्चा सौदा के प्रबंधक रहे रणजीत सिंह की हत्या के मामले में जिस प्रकार पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सीबीआई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को सजा मुक्त किया है, वह चकित करने वाली घटना है। इस मामले में चार अन्य को भी बरी कर दिया गया। इन सभी के बरी होने के बाद यह सवाल अनुत्तर है कि अगर इन सभी ने रणजीत सिंह की हत्या नहीं की तो फिर कैसे उनका मर्डर हुआ। जबकि वे डेरे में साध्वी यौन शोषण मामले में अहम गवाह थे। फैसले के पलटे जाने के बाद डेरा प्रेमियों ने जहां इसे न्याय की जीत बताया है वहीं पीड़ित पक्ष दुख और अन्याय से भर गया है।
भारतीय न्याय प्रणाली का यह कैसा स्वरूप है कि अपराध अपराध करने के बावजूद सबूतों के अभाव में या फिर गवाहों के अभाव में सजा मुक्त हो जाता है और पीड़ित जिसके परिवार का सदस्य सदा के लिए उसके पास से चला गया, को खाली हाथ अदालत के दर से लौट आना पड़ता है। सवाल यह है कि सीबीआई ने इस मामले में किस प्रकार जांच की और अदालत में किस प्रकार पैरवी की गई कि हाईकोर्ट ने डेरा मुखी और अन्य चार को सजा मुक्त कर दिया। आखिर कौन इस नाइंसाफी को स्वीकार करेगा, जिनके ऊपर आरोप लगे थे वह पहला पहले ही दो मामलों में 20 साल कैद की सजा काट रहा है, क्या यह मान लिया जाए कि उन मामलों में भी उनके साथ तथाकथित नाइंसाफी हुई।
हरियाणा सरकार की ओर से डेरा मुखी को पैरोल पर रिहाई भी सवालों के घेरे में है। डेरा मुखी को हर चुनिंदा अवसर पर भारी सुरक्षा बंदोबस्त के बीच पैरोल मिलती रही है और जब भी इस संबंध में सरकार से सवाल पूछा जाता है तो यही कहा जाता है कि यह डेरा मुखी का हक है। हालांकि दूसरी तरफ अनेक ऐसे कैदी हैं, जोकि एक बार जेल के अंदर जाने के बाद वहां सड़ रहे हैं और पैरोल उनके लिए बहुत दूर की कौड़ी है। ऐसा इसलिए है कि क्योंकि उनके पास सिफारिश नहीं है और न ही वे इतने पावरफुल हैं कि अपराध भी करें और फिर पैरोल भी आसानी से पा जाएं। जबकि दो साध्वियों से यौन शोषण और दो लोगों की हत्या के दोषी इस डेरा मुखी को कुछ-कुछ अंतराल के बाद पैरोल मिल रही है।
इस दौरान वह पुलिस की सख्त सुरक्षा में अपने डेेरे में आराम फरमाता है, केक काटता है, ऑनलाइन अपने डेरा प्रेमियों को प्रवचन देता है और उससे मिलने के लिए डेरे के बाहर लाइन लग जाती है। इन आगंतुकों में सरकार के मंत्री, ओएसडी, विधायक और दूसरे जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग होते हैं। क्या यह न्याय व्यवस्था का मजाक नहीं है, क्या न्यायिक प्रणाली में दिए जाने वाले पैरोल की धज्जियां उड़ाना इसे नहीं कहेंगे?
गौरतलब है कि डेरा मुखी को पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या और साध्वी यौन शोषण केस में दस-दस साल की कैद मिली हुई है। इतने संगीन अपराधी जिसको सजा सुनाए जाने के बाद पूरे हरियाणा में दंगे हुए थे और करोड़ों रुपये की सार्वजनिक सम्पत्ति तबाह कर दी गई। जिसके डेरा प्रेमियों की मिलीभगत सामने आ चुकी है, जब उन्होंने डेरा मुखी को छुड़वाने के लिए यह सब प्रपंच रचा। डेरा मुखी को लगातार पैरोल देने के मामले में हरियाणा सरकार का तर्क है कि जेल मैनुअल और कैदी के अधिकारों के अनुसार ही उन्हें पैरोल दी जाती है।
बेशक, जेल मैनुअल इसके अधिकार देते हैं, लेकिन यह सवाल फिर भी बना रह जाता है कि आखिर डेरा मुखी पर इतनी मेहरबानी क्यों हो रही है। बड़ा सवाल यह भी है कि अदालत ने जिसे कठोर कारावास की सजा सुनाई है, जिसे उम्रकैद मिली हो। क्या उसके अपराध को सामान्य माना जा सकता है। डेरा मुखी का अपराध साबित हुआ है, जिसके बाद उन्हें सजा सुनाई गई है, अब जब वे लगातार पैरोल पर आकर अपने समर्थकों से संपर्क साध रहे हैं तो उन परिवारों पर क्या बीत रही होगी, जिन्होंने जेल की सलाखों के पीछे भिजवाने के लिए रात-दिन एक कर दिया।
बेशक, इस तरह की बातों में कुछ भी गैरकानूनी नजर नहीं आता हो, लेकिन यह पूरी तरह से अनैतिक और असामाजिक जरूर है। जेल इसलिए बनाई गई हैं, ताकि उस माहौल में रहकर कैदी को उसका प्रायश्चित कराया जा सके, लेकिन यह अपनी तरह का पहला मामला होगा कि कोई कैदी इतनी आलीशान जिंदगी पैरोल के दौरान काटता है और वह इसका अहसास भी करवाता है कि जैसे उसके साथ अन्याय हुआ है। हालांकि अब डेरा प्रबंधक रहे रणजीत सिंह की हत्या के मामले में डेरा मुखी और अन्य की रिहाई यह बताती है कि इस मामले में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार हुआ है। यह भी सामने आ रहा है कि सीबीआई ने ढंग से जांच नहीं की और केस की सही पैरवी नहीं हुई। यह सीबीआई की बहुत बड़ी हार है, जिसका संज्ञान लिया जाना चाहिए। आखिर यह कौन बताएगा कि रणजीत सिंह की जान किसने ली, अगर दोषी यहीं नहीं है तो वह अज्ञात कौन है, कोई उसका पता लगाएगा?
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